नयी दिल्ली, 10 अप्रैल भारत मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, जिसकी इस समय दुनिया भर में बहुत अधिक मांग है, का निर्यात सिर्फ विदेशी सरकारों को करेगा और निजी कंपनियों को इसे नहीं बेचा जाएगा। सूत्रों ने यह जानकारी दी। यह उत्पाद इस समय निर्यात के लिए प्रतिबंधित श्रेणी में है, इसलिए यह फैसला किया गया है।
हालांकि, इस दवा का निर्यात पूरी तरह प्रतिबंधित है, लेकिन भारत सरकार ने कोरोना वायरस महामारी का मुकाबला करने की अपनी वैश्विक प्रतिबद्धता के चलते इसका निर्यात करने का निर्णय किया है।
सूत्रों ने कहा, ‘‘हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन अभी भी प्रतिबंधित वस्तु है। निजी कंपनियों से निजी कंपनियों को या एक घरेलू निर्यातक से विदेशी आयातक को इस व्यापार प्रतिबंधित है। सरकार जो प्रक्रिया अपना रही है, उसका मकसद उन देशों की मदद करना है, जिन्हें इसकी सख्त जरूरत है या जो पहले से इस दवा के लिए भारत पर निर्भर हैं या नेपाल, श्रीलंका और भूटान जैसे मित्र देश हैं।’’
सूत्रों ने इस प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा कि जिन देशों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का आयात करना है, उन्हें विदेश मंत्रालय के जरिए अपना आवेदन देना होगा।
इसके बाद औषधि विभाग उस देश द्वारा मांगी गई मात्रा का आकलन करेगा और भारत में उपलब्धता तथा भारत के हितों के साथ समझौता किए बिना विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) को लाइसेंस देने या खेप जारी करने के लिए विभाग सीमा शुल्क अधिकारियों को इजाजत देने की सिफारिश करेगा।
डीजीएफटी वाणिज्य मंत्रालय के तहत आता है और निर्यात या आयात के लिए लाइसेंस या अनुमति या अनापत्ति प्रमाणपत्र देता है।
भारत ने 25 मार्च को कुछ अपवादों के साथ हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। बाद में चार अप्रैल को बिना किसी अपवाद के इसके निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया। इस दवा का इस्तेमाल कोरोना वायरस संक्रमण का इलाज करने के लिए किया जा रहा है।
पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ टेलीफोन पर बातचीत के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति की मांग की थी।
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन एक पुरानी और सस्ती दवा है, जिसका इस्तेमाल मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। भारत वैश्विक स्तर पर इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।
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