नयी दिल्ली, 10 मार्च : उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के पद से त्रिवेन्द्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) को हटाने का भाजपा का फैसला पार्टी के प्रादेशिक क्षत्रपों की मुख्यमंत्री की पसंद को नजरअंदाज करने की अब तक की प्रक्रियाओं के विपरीत है. पार्टी के इस फैसले के पीछे प्रमुख वजह यह माना जा रहा है कि यदि रावत अपने पद पर बने रहते तो भाजपा को राज्य विधानसभा के चुनाव (Assembly elections) में बहुत भारी पड़ सकता था. ठीक वैसा ही जैसा झारखंड में रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाए रखने से 2020 के विधानसभा चुनाव में हुआ. उत्ततराखंड में अगले साल के शुरुआती महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. रावत के खिलाफ राज्य के भाजपा विधायकों के एक वर्ग की शिकायतें लगातार बढ़ रही थीं. इनमें कांग्रेस से छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले विधायक भी थे. आम जन मानस में रावत की छवि को लेकर भी इन विधायकों ने केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष चिंता जताई थी.
सूत्रों के मुताबिक इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने रावत की जगह किसी अन्य चेहरे के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव में जाने का फैसला किया. देहरादून में बुधवार को भाजपा विधायक दल की बैठक होगी, जिसमें नये नेता का चुनाव किया जाएगा. माना जा रहा है कि जो भी पार्टी का चेहरा होगा वह केंद्रीय नेतृत्व की पसंद का होगा. पिछले दिनों पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और भाजपा महासचिव व उत्तराखंड के प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम को देहरादून भेजकर इस संबंध में विधायकों का मन भी टटोला था. यह भी पढ़ें : Haryana में खट्टर सरकार पर मंडरा रहे हैं संकट के बादल, अविश्वास प्रस्ताव पर आज बहस; सभी पार्टियों ने अपने विधायकों को मौजूद रहने का दिया निर्देश
पार्टी यदि राजपूत बिरादरी से आने वाले निवर्तमान मुख्यमंत्री की जगह किसी राजपूत को ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करती है तो इनमें मंत्री धन सिंह रावत और सतपाल महाराज के नाम प्रमुख हैं. इस पद के लिए भाजपा के सांसदों अनिल बलूनी और अजय भट्ट के नाम भी प्रमुखता से सामने आए हैं. दोनों ब्राह्मण हैं. राज्य में राजपूत मतदाताओं की तादाद सर्वाधिक है.