देश की खबरें | रोडरेज के 34 साल पुराने मामले में सिद्धू को एक साल की कैद, कांग्रेस नेता बोले-कानून का सम्मान करूंगा

नयी दिल्ली/पटियाला, 19 मई उच्चतम न्यायालय ने 1988 के ‘रोड रेज’ मामले में बृहस्पतिवार को कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू की सजा को एक साल के कठोर कारावास तक बढ़ा दिया।

लगभग 34 साल पहले सड़क पर हुई हाथापाई की इस घटना में 65 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। उस समय सिद्धू की उम्र लगभग 25 साल थी। शीर्ष अदालत ने सिद्धू को पहले इस मामले में केवल एक हजार रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था। इसके खिलाफ पीड़ित परिवार ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया और आज सिद्धू को एक वर्ष की कठोर कैद की सजा सुनाई।

जब फैसला आया तो सिद्धू उस समय महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए पटियाला में थे और उन्होंने आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ने के प्रतीकात्मक विरोध के रूप में हाथी की सवारी की।

कांग्रेस नेता ने शीर्ष अदालत के आज के फैसले के बाद ट्वीट किया, ‘‘कानून का सम्मान करूंगा।’’

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्यपाल जैन के अनुसार, सिद्धू के पास पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है।

अधिकारियों ने कहा कि अगर सिद्धू आत्मसमर्पण नहीं करेंगे तो पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करना होगा और इसके बाद उन्हें पटियाला जेल भेज दिया जाएगा।

न्यायालय के आज के फैसले के बाद मृतक गुरनाम सिंह के परिवार ने ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।

गुरनाम सिंह की बहू परवीन कौर ने कहा, "हम बाबा जी (सर्वशक्तिमान) को धन्यवाद देते हैं। हमने इसे बाबा जी पर छोड़ दिया था। बाबा जी ने जो कुछ भी किया है वह सही है।"

कौर ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘हम फैसले से संतुष्ट हैं।’’

परिवार पटियाला शहर से पांच किलोमीटर दूर घलोरी गांव में रहता है।

गुरनाम सिंह के पोते सब्बी सिंह ने भी भगवान का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा, ‘‘हम ईश्वर का धन्यवाद व्यक्त करते हैं।’’

पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रमुख सिद्धू के पास हालांकि क्यूरेटिव याचिका दायर करने का विकल्प है। यह किसी भी फैसले को लेकर अंतिम न्यायिक सुधारात्मक विकल्प होता है।

अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर सिद्धू ने संवाददाताओं से कहा, "कोई टिप्पणी नहीं।"

शीर्ष अदालत ने आज के फैसले में कहा कि अपर्याप्त सजा देने के लिए किसी भी "अनुचित सहानुभूति" से न्याय प्रणाली को अधिक नुकसान होगा और इससे कानून पर जनता के विश्वास में कमी आएगी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि संबंधित परिस्थितियों में भले ही आपा खो गया हो, लेकिन आपा खोने का परिणाम भुगतना होगा।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने सिद्धू को दी गई सजा के मुद्दे पर पीड़ित परिवार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामले में उचित दंड का सिद्धांत ‘सजा का आधार’ होता है।

इसने कहा कि मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस नेता पर केवल जुर्माना लगाते समय "सजा से संबंधित कुछ मूल तथ्य" छूट गए।

शीर्ष अदालत ने मई 2018 में सिद्धू को मामले में 65 वर्षीय व्यक्ति को "जानबूझकर चोट पहुंचाने" के अपराध का दोषी ठहराया था, लेकिन केवल 1,000 रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था।

यह उल्लेख करते हुए कि हाथ भी अपने आप में तब एक हथियार साबित हो सकता है जब कोई मुक्केबाज, पहलवान, क्रिकेटर, या शारीरिक रूप से बेहद फिट व्यक्ति किसी व्यक्ति को धक्का दे, शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका मानना ​​है कि सजा के स्तर पर सहानुभूति दिखाने और सिद्धू को केवल जुर्माना लगाकर छोड़ देने की आवश्यकता नहीं थी।

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘...हमें लगता है कि रिकॉर्ड में एक त्रुटि स्पष्ट है.... इसलिए, हमने सजा के मुद्दे पर पुनर्विचार आवेदन को स्वीकार किया है। लगाए गए जुर्माने के अलावा, हम एक साल के कठोर कारावास की सजा देना उचित समझते हैं।’’

इसने कहा कि कुछ ठोस पहलू जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता थी, ऐसा प्रतीत होता है कि सजा के चरण में किसी तरह से छोड़ दिए गए थे, जैसे कि सिद्धू की शारीरिक फिटनेस, क्योंकि वह एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर थे तथा लंबे और तंदुरुस्त थे तथा उन्हें अपने हाथ के प्रहार की शक्ति के बारे में पता था।

पीठ ने कहा, ‘‘यह प्रहार शारीरिक रूप से समान व्यक्ति पर नहीं, बल्कि 65 वर्षीय एक व्यक्ति पर किया गया था, जो उनसे दोगुनी से अधिक उम्र का था। प्रतिवादी संख्या-1 (सिद्धू) यह नहीं कह सकते कि उन्हें प्रहार के प्रभाव के बारे में पता नहीं था या इस पहलू से अनभिज्ञ थे।’’

अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि किसी को उन्हें यह याद दिलाना पड़ता कि उनके प्रहार से कितनी चोट लग सकती है। हो सकता है कि संबंधित परिस्थितियों में आपा खो गया हो, लेकिन आपा खोने के परिणाम भुगतने होंगे।’’

पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के तहत साधारण चोट के अपराध के लिए दोषी ठहराते समय कुछ हद तक छूट प्रदान की और सवाल यह है कि क्या केवल समय बीतने पर 1,000 रुपये का जुर्माना पर्याप्त सजा हो सकता है, जब 25 साल के सिद्धू के हाथों से किए गए प्रहार के कारण एक व्यक्ति की जान चली गई।

भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाने) के तहत अधिकतम एक वर्ष तक की कैद या 1,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘हाथ अपने आप में एक हथियार भी हो सकता है जब कोई मुक्केबाज, पहलवान या क्रिकेटर या शारीरिक रूप से बेहद फिट कोई व्यक्ति प्रहार करे।"

इसने कहा कि जहां तक ​​चोट लगने की बात है तो शीर्ष अदालत ने मृतक के सिर पर हाथ से वार करने संबंधी याचिका को स्वीकार कर लिया है।

पीठ ने कहा, "हमारे विचार में इसका महत्व है जो रिकॉर्ड में एक स्पष्ट त्रुटि है जिसमें कुछ सुधारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता है।"

न्यायालय ने अपने 24 पन्नों के फैसले में अपराध की गंभीरता और सजा के बीच उचित अनुपात बनाए रखने की आवश्यकता पर विचार किया।

पीठ ने कहा, "एक महत्वपूर्ण पहलू को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अपर्याप्त सजा देने के लिए कोई भी अनुचित सहानुभूति न्याय प्रणाली को अधिक नुकसान पहुंचाएगी तथा कानून की प्रभावकारिता में जनता के विश्वास को कम करेगी।"

सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर गौर करने पर सहमत हो गई थी और नोटिस जारी किया था, जो सजा की मात्रा तक सीमित था।

शीर्ष अदालत ने पूर्व में सिद्धू से उस अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें कहा गया था कि मामले में उनकी दोषसिद्धि केवल जानबूझकर चोट पहुंचाने के छोटे अपराध के लिए ही नहीं होनी चाहिए थी।

सिद्धू ने 25 मार्च को शीर्ष अदालत से कहा था कि उन्हें दी गई सजा की समीक्षा से संबंधित मामले में नोटिस का दायरा बढ़ाने का आग्रह करने वाली याचिका प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

नोटिस का दायरा बढ़ाने का आग्रह करने वाली याचिका के जवाब में सिद्धू ने कहा था कि शीर्ष अदालत ने समीक्षा याचिकाओं की सामग्री का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद सजा की अवधि तक इसके दायरे को सीमित कर दिया है।

जवाब में कहा गया था, "यह अच्छी तरह से तय है कि जब भी यह अदालत सजा को सीमित करने के लिए नोटिस जारी करती है, तब तक केवल उस प्रभाव के लिए दलीलें सुनी जाएंगी जब तक कि कुछ असाधारण परिस्थिति/सामग्री अदालत को नहीं दिखाई जाती है। यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया गया है कि वर्तमान आवेदनों की सामग्री केवल खारिज किए गए तर्कों को दोहराती है और इस अदालत से सभी पहलुओं पर हस्तक्षेप करने के लिए कोई असाधारण सामग्री नहीं दिखाती है।’’

इसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत ने मेडिकल साक्ष्य सहित रिकॉर्ड में मौजूद सभी सबूतों का अध्ययन किया, ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि गुरनाम सिंह की मौत के कारण का पता नहीं लगाया जा सका।

सिद्धू ने कहा था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि "मौत प्रतिवादी के एक ही आघात से हुई थी (यह मानते हुए कि घटना हुई थी) और इस अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला कि यह भादंसं की धारा 323 के तहत आएगा।"

शीर्ष अदालत ने 15 मई 2018 को सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराने तथा मामले में तीन साल कैद की सजा सुनाने के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया था लेकिन इसने उन्हें एक वरिष्ठ नागरिक को चोट पहुंचाने का दोषी ठहराया था।

शीर्ष अदालत ने सिद्धू के सहयोगी रूपिंदर सिंह संधू को भी सभी आरोपों से यह कहते हुए बरी कर दिया था कि दिसंबर 1988 में अपराध के समय सिद्धू के साथ उनकी उपस्थिति के बारे में कोई भरोसेमंद सबूत नहीं है।

बाद में सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर गौर करने के लिए सहमत हुई थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, सिद्धू और संधू 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला में शेरांवाला गेट क्रॉसिंग के पास एक सड़क के बीच में खड़ी एक जिप्सी में थे। उस समय गुरनाम सिंह और दो अन्य लोग पैसे निकालने के लिए बैंक जा रहे थे। जब वे चौराहे पर पहुंचे तो मारुति कार चला रहे गुरनाम सिंह ने जिप्सी को सड़क के बीच में पाया और उसमें सवार सिद्धू तथा संधू को इसे हटाने के लिए कहा। इससे दोनों पक्षों में बहस हो गई और बात हाथापाई तक पहुंच गई। गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई।

सितंबर 1999 में निचली अदालत ने सिद्धू को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने फैसले को उलट दिया था और दिसंबर 2006 में सिद्धू तथा संधू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया था। इसने उन्हें तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी और उन पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।

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