देश की खबरें | विभागाध्यक्ष, संस्थान निदेशक को मरीज के चिकित्सकीय रिकार्ड की जानकारी होनी चाहिए: अदालत

नयी दिल्ली, नौ मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि चिकित्सा क्षेत्र में, विभागाध्यक्ष (एचओडी) और किसी संस्थान या अस्पताल के निदेशक को किसी रोगी की बीमारी के साथ ही यह भी पता होना चाहिए कि उसे किस तरह का उपचार दिया जा रहा है।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने कहा कि किसी मरीज की बीमारी और उपचार का विवरण इलाज करने वाले चिकित्सक द्वारा विभागाध्यक्ष या संस्था के निदेशक के साथ साझा करने से गोपनीय सूचना का उल्लंघन नहीं होता है, बल्कि यह मरीज के कल्याण के लिए होता है।

अदालत ने कहा, ‘‘इसके विपरीत, इस तरह का परामर्श रोगी को उपचार देने में मददगार साबित हो सकता है ...।’’

पीठ की यह टिप्पणी उस महिला की अर्जी पर आयी जिसने यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि उसके बेटे की मानसिक बीमारी और इलाज का विवरण तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं किया जाए जिसका इलाज इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज (इहबास) में किया जा रहा है।

महिला ने अपने बेटे के मेडिकल रिकॉर्ड की गोपनीयता बनाए रखने के लिए इहबास को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए पहले एकल न्यायाधीश के समक्ष याचिका दायर की थी।

इहबास की ओर से पेश अधिवक्ता तुषार सन्नू ने अदालत को आश्वासन दिया था कि चिकित्सा रिकॉर्ड की पहुंच केवल इलाज करने वाले डॉक्टरों, विभागाध्यक्ष और संस्था के निदेशक तक ही होगी और इस आश्वासन के आधार पर एकल न्यायाधीश ने महिला की अर्जी का निस्तारण कर दिया था।

एकल न्यायाधीश के 28 अप्रैल के आदेश के खिलाफ महिला ने खंडपीठ का रुख किया जिसने 3 मई को कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के तहत अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ चिकित्सा जानकारी साझा करने के संबंध में एक अपवाद है ताकि मरीज को उचित देखभाल और उपचार प्रदान किया जाए।

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