देश की खबरें | महाराष्ट्र की राजनीति के ‘केंद्र-बिंदु’ बनकर उभरे देवेंद्र फडणवीस
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मुंबई, 23 नवंबर महाराष्ट्र की राजनीति में बिल्कुल निचले स्तर से शुरुआत करके दो बार मुख्यमंत्री रह चुके देवेन्द्र फडणवीस राज्य के इस प्रमुख पद को पाने की ओर अग्रसर हैं।
फडणवीस (54) का करियर लचीलेपन और रणनीतिक दांव का मिश्रण रहा है। वह विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के निर्णायक प्रदर्शन के बाद तीसरी बार राज्य का नेतृत्व करने की स्थिति में हैं।
फडणवीस का राजनीतिक सफर असाधारण रहा है। एक पार्षद से लेकर नागपुर के सबसे युवा महापौर बनने वाले देवेंद्र फडणवीस ने अपनी पार्टी के भीतर एक प्रमुख नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है। वह शिवसेना के मनोहर जोशी के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले दूसरे ब्राह्मण हैं।
फडणवीस का उत्थान 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुआ, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह से महत्वपूर्ण समर्थन हासिल किया। मोदी ने एक चुनावी रैली के दौरान फडणवीस को ‘‘नागपुर का देश को उपहार’’ कहा और इस तरह से फडणवीस में अपने विश्वास को रेखांकित किया था।
हालांकि मोदी ने 2014 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धुआंधार प्रचार किया था, लेकिन चुनावों में पार्टी की अभूतपूर्व जीत का कुछ श्रेय प्रदेश भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष फडणवीस को भी गया था।
देवेंद्र फडणवीस जनसंघ और बाद में भाजपा के नेता रहे स्वर्गीय गंगाधर फडणवीस के पुत्र हैं। गंगाधर फडणवीस को भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी अपना ‘‘राजनीतिक गुरु’’ कहते हैं। देवेंद्र फडणवीस ने युवावस्था में ही राजनीति में कदम रख दिया था, जब वे 1989 में संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए थे। बाईस वर्ष की आयु में वह नागपुर नगर निगम में पार्षद बने और 1997 में 27 वर्ष की आयु में इसके सबसे युवा महापौर।
फडणवीस ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1999 में लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार तीन विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। वह निवर्तमान राज्य विधानसभा में नागपुर दक्षिण पश्चिम सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं और अब तक की मतगणना के परिणाम के अनुसार वह इस चुनाव में भी जीत दर्ज करने की ओर बढ़ रहे हैं।
महाराष्ट्र के कई नेताओं के विपरीत, फडणवीस भ्रष्टाचार के आरोपों से बेदाग रहे हैं।
महाराष्ट्र के सबसे मुखर नेताओं में से एक, फडणवीस को कथित सिंचाई घोटाले को लेकर राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) सरकार को घेरने का श्रेय भी दिया जाता है।
फडणवीस को 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद झटका लगा था, जब तत्कालीन संयुक्त शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन छोड़ दिया, जिससे भाजपा नेता का बहुप्रचारित ‘‘मी पुन्हा येईं (मैं फिर आऊंगा)’’ नारा उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाया।
फडणवीस ने 23 नवंबर 2019 को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जबकि अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, उच्चतम न्यायालय के आदेश पर विधानसभा में शक्ति परीक्षण से पहले ही फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से 26 नवंबर को इस्तीफा दे दिया।
शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के सहयोग से उद्धव ठाकरे बाद में मुख्यमंत्री बने। हालांकि शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे द्वारा पार्टी तोड़ने के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। बाद में एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।
बड़ी संख्या में नेताओं के शिवसेना छोड़ने और ठाकरे के पद से हटने के बाद, कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने सोचा कि फडणवीस मुख्यमंत्री बनेंगे। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना था कि इस पूरे प्रकरण के पीछे फडणवीस का हाथ था। हालांकि, भाजपा नेतृत्व के पास अन्य योजना थी और अनिच्छुक फडणवीस को उप-मुख्यमंत्री का पद संभालने के लिए कहा गया।
उप-मुख्यमंत्री के रूप में पिछले ढाई वर्षों का उनका कार्यकाल एक तरह से पुनरुत्थान वाला रहा और शनिवार का परिणाम वैसा ही था जिसका पार्टी को इंतजार था।
फडणवीस हालांकि एक राजनीतिक रूप से सक्रिय परिवार से आते हैं, उनके पिता और उनकी एक अन्य संबंधी, दोनों महाराष्ट्र विधान परिषद में रहे, लेकिन फिर भी फडणवीस ने अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाई है।
मुख्यमंत्री के रूप में फडणवीस का पहला कार्यकाल सुशासन और प्रभावी राजनीतिक दांव का संयोजन था। उन्होंने बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में तेज़ी लाने के लिए प्रशंसा अर्जित की, विशेष रूप से उन्हें शहरी मतदाताओं का समर्थन मिला।
हालांकि, उनका कार्यकाल चुनौतियों से खाली नहीं था। अनियमित मौसम के कारण राज्य में फसलों को काफी नुकसान हुआ और प्रभावित किसानों के लिए ऋण माफी की उनकी शुरुआती अस्वीकृति का व्यापक रूप से विरोध हुआ।
फडणवीस के कार्यकाल के दौरान एक और बड़ा मुद्दा शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मराठा समुदाय की मांग थी। हालांकि उन्होंने इन मांगों को पूरा करने के लिए कानून पारित किया, लेकिन बाद में उच्चतम न्यायालय के फैसले ने कानून को पलट दिया। इससे मराठा समुदाय के कई लोग असंतुष्ट हो गए और उन्होंने इस विफलता के लिए फडणवीस को दोषी ठहराया।
वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव फडणवीस की राजनीतिक दिशा में एक नाटकीय बदलाव लाया। मुख्यमंत्री पद साझा किए बिना सरकार में शामिल होने से शिवसेना के इनकार के बाद फडणवीस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता अजित पवार के साथ वैकल्पिक गठबंधन की तलाश की। हालांकि, यह सरकार अल्पकालिक थी, जो केवल 72 घंटे बाद गिर गई। इसके बाद फडणवीस ने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई।
जून 2022 में, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के भीतर विद्रोह के बाद, फडणवीस को भाजपा नेतृत्व द्वारा शिंदे के अधीन उपमुख्यमंत्री के रूप में सरकार में लौटने का निर्देश दिया गया।
हालांकि शुरू में अनिच्छुक, फडणवीस ने बाद में पार्टी नेतृत्व के प्रति अपनी निष्ठा का संकेत देते हुए उक्त भूमिका स्वीकार कर ली। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में राज्य में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद भी उन्होंने भाजपा और शिंदे गुट के बीच सीट बंटवारे की व्यवस्था को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
फडणवीस का करियर अब तक लचीलेपन, अनुकूलन क्षमता और रणनीतिक सूझबूझ से परिभाषित रहा है। अनुकूलन और महत्वपूर्ण निर्णय लेने की उनकी क्षमता आने वाले दिनों में उनकी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
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