COVID-19 के कारण ओंगे, जरावा जनजातियों समेत पृथक रहने वाले समुदायों आनुवंशिक जोखिम ज्यादा: अध्ययन
अंडमान द्वीप की ओंगे और जरावा जनजातियों समेत भारत में पृथक रहने वाले समुदायों पर कोविड-19 के कारण आनुवंशिक जोखिम अधिक है.
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर: अंडमान द्वीप के ओंगे और जरावा जनजातियों समेत भारत में पृथक रहने वाले समुदायों पर कोविड-19 के कारण आनुवंशिक जोखिम अधिक है. वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)- सेल्युलर और आणविक जीवविज्ञान (सीसीएमबी) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है. इस अध्ययन के निष्कर्ष ‘जीन एंड इम्युनिटी’ पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं.
इस अध्ययन में पाया गया है कि सरकार को इन जनजातीय समूहों को उच्च प्राथमिकता के आधार पर सुरक्षा प्रदान करने और उनकी अत्यधिक देखभाल करने पर विचार करना चाहिए, ताकि ‘‘हम आधुनिक मानव विकास के कुछ जीवित खजाने को खो नहीं दें. ’’सीएसआईआर-सीसीएमबी हैदराबाद के कुमारासामी थंगराज और बीएचयू, वाराणसी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे की अगुवाई वाले अनुसंधान दल ने कहा कि सार्स-सीओवी-2 वायरस के संक्रमण ने दुनियाभार के विभिन्न जातीय समूहों को प्रभावित किया है.यह भी पढ़े: COVID-19 Update: पिछले 24 घंटे में देश में कोविड-19 के 18,987 नए मामले
उन्होंने कहा कि हाल में यह बताया गया कि ब्राजील के मूल समूह इस वायरस से बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं और कोरोना वायरस के कारण इन समूहों में मृत्यु दर अन्य समुदायों की तुलना में दुगुनी है.अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि कुछ मूल समुदाय इस वैश्विक महामारी के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं. उन्होंने बताया कि अंडमान द्वीप समेत भारत में भी ऐसे कई मूल एवं छोटे समुदाय हैं, जो पृथक रह रहे हैं.
दुनिया भर के 13 संस्थानों के 11 वैज्ञानिकों ने 227 भारतीय समुदायों का जीनोमिक विश्लेषण किया और पाया कि जिस आबादी के जीनोम में दीर्घ डीएनए समयुग्मक है, उनके कोविड-19 से संक्रमित होने की आशंका अधिक है.समयुग्मक एक आनुवंशिक स्थिति होती है, जिसमें एक व्यक्ति को अपने माता-पिता दोनों से एक विशेष जीन के लिए समान जीन प्रारूप या जेनेटिक तत्व विरासत में मिलते हैं.
बीएचयू में आणविक मानव विज्ञान के प्रोफेसर चौबे ने कहा, ‘‘पृथक रहने वाली आबादी पर कोविड-19 के कारण पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में कुछ अटकलें लगाई गई हैं, लेकिन ऐसा पहली बार है, जब हमने जीनोमिक आंकड़ों का उपयोग उन पर इसके जोखिम का पता लगाने के लिए किया. ’’उन्होंने ‘पीटीआई ’ से कहा, ‘‘यह दृष्टिकोण कोविड-19 से इन समुदायों को होने वाले जोखिम को मापने के लिए उपयोगी होगा. ’’
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