साम्प्रदायिक नारेबाजी मामले में हिंदू संगठन के अध्यक्ष को अंतरिम संरक्षण देने से अदालत का इनकार
सांकेतिक तस्वीर (Photo Credits: PTI)

नयी दिल्ली, 27 अगस्त : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष भूपिंदर तोमर (Bhupinder Tomar) को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण देने से शुक्रवार को इनकार कर दिया, जिन पर गत 8 अगस्त को जंतर-मंतर पर आयोजित एक रैली में सांप्रदायिक नारे लगाने और युवाओं को एक विशेष धर्म के खिलाफ उकसाने का आरोप है. न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने तोमर की अग्रिम जमानत की अर्जी पर नोटिस जारी किया और दिल्ली पुलिस से स्थिति रिपोर्ट मांगी. न्यायाधीश ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया, सभी तरह के नारे और भाषण देने की बात सामने आयी है. स्थिति रिपोर्ट देने दीजिये.’’ न्यायाधीश ने मामले को 13 सितंबर आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. अदालत ने कहा, ‘‘मैं जानना चाहती हूं कि आप (नारेबाजी के समय) कहां थे. क्या आप मौजूद नहीं थे?..मुझे पूरी स्थिति रिपोर्ट प्राप्त करने दें.’’

तोमर की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल कार्यक्रम के आयोजक नहीं थे और उन्हें मामले में पहले ही जमानत मिल चुकी है. अभियोजन पक्ष के वकील तरंग श्रीवास्तव ने बताया कि वह कथित आपत्तिजनक नारेबाजी का वीडियो और प्रतिलेख अदालत को पहले ही साझा कर चुके हैं. इस महीने की शुरुआत में, यहां की एक सत्र अदालत ने भूपिंदर तोमर उर्फ पिंकी चौधरी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी, ‘‘हम तालिबान राज्य नहीं हैं.’’ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिल अंतिल ने कहा था कि अतीत में इस तरह की घटनाओं ने सांप्रदायिक तनाव भड़काया है जिससे दंगे हुए हैं और जान-माल का नुकसान हुआ है. यह भी पढ़ें : UP Corona Updates: उत्तर प्रदेश के 18 जिले हुए कोरोना संक्रमण से मुक्त, नहीं है एक भी एक्टिव केस

न्यायाधीश ने 21 अगस्त को पारित आदेश में कहा था, ‘‘हम तालिबान राज्य नहीं हैं. कानून का राज, हमारे बहुसांस्कृतिक और बहुलतावादी समुदाय के शासन का पवित्र सिद्धांत है. आज जब पूरा भारत ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है तब कुछ ऐसे लोग हैं जो अब भी असहिष्णु और स्वकेन्द्रित मानसिकता में जकड़े हुए हैं.’’ अदालत ने कहा था कि जो साक्ष्य उपलब्ध हैं उससे मामले में आरोपी की संलिप्तता प्रथम दृष्टया स्पष्ट है और आरोपी पर लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं. पुलिस ने अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि आरोपियों ने जंतर-मंतर पर मंच का इस्तेमाल सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने और अपनी योजनाओं को सांप्रदायिक रंग देने के लिए किया, युवाओं को एक विशेष धर्म के खिलाफ उकसाया, जबकि सक्षम प्राधिकारी ने सभा को मंजूरी से इनकार कर दिया था.