कोलकाता, 10 अप्रैल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल पर जोर दिए जाने के बाद दार्जिलिंग की पहाड़ियों में सिनकोना पेड़ों की बागवानी करने वाले किसानों को कुनैन की मांग बढ़ने की भी आशा है।
दरअसल मलेरिया के प्रभावी इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के अलावा कुनैन की गोलियों का उपयोग किया जाता है जो सिनकोना पेड़ों की छाल से बनती हैं।
दार्जिलिंग की पहाड़ियों में 1862 में सिनकोना की बागवानी शुरू हुई और दशकों तक फूलती-फलती रही क्योंकि देश में मलेरिया के मरीजों की संख्या में कुछ खास कमी नहीं आयी और ना ही इस दवा की मांग मे।
विश्व मलेरिया रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में भारत की आधी आबादी को मलेरिया होने का खतरा था।
हाल-फिलहाल के वर्षों में सिनकोना की बागवानी करने वाले किसानों को कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्योंकि कुनैन की गोलियों का सिंथेटिक तरीके से उत्पादन होने लगा।
पश्चिम बंगाल में सिनकोना बागवानी के निदेशक सैम्यूएल राय ने कहा, ‘‘कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर मलेरिया की दवाओं की मांग बढ़ी है और इससे दार्जिलिंग में सिनकोना की बागवानी भी बढ़ेगी। वर्षों की निराशा के बाद हमें आशा है कि व्यापार में सुधार आएगा।’’
उन्होंने बताा कि दवा बनाने वाली कंपनियां हालांकि अभी भी सिनकोना पेड़ों की छाल ई-नीलामी के जरिए खरीदतीं हैं क्योंकि इसका उपयोग अन्य कई दवाओं के निर्माण में भी होता है, लेकिन उन्होंने माना कि अब पहले जैसी बात नहीं रही।
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की बढ़ती मांग की पृष्ठभूमि में राय ने कहा कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन एक सिंथेटिक अणु है जो क्लोरोक्वीन से बनता है और यह रसायनिक तरीके से तैयार कुनैन है।
उन्होंने बताया कि कुनैन की गोलियां सिनकोना पेड़ों की छाल से तैयार प्राकृतिक सत्व हैं।
यह पूछने पर कि उन्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि व्यापार बेहतर होगा, राय ने कहा, ‘‘मलेरिया की दवाओं की बढ़ती मांग को देखकर ऐसा लगता है कि सिनकोना पेड़ों की छाल से कुनैन का प्राकृतिक उत्पादन बढ़ेगा।’’
उन्होंने बताया, ‘‘मलेरिया की दवाओं की मांग बढ़ने के बाद मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश ने हमसे सिनकोना पेड़ों की सूखी छाल के बारे में सूचना मांगी है। हमें आशा है कि प्राकृतिक कुनैन लाभकारी होगा।’’
राय ने बताया कि सिनकोना की बागवानी दार्जिलिंग और कलिम्पोंग में होती है।
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